Tuesday, June 21, 2011

जिक्र बॉलीवुड के कुछ सुप्रसिद्ध पिताओं का . .

फादर्स डे पर विशेष भारतीय समाज में परम्पराओं की मान्यता ज्यादा है। हर काम को परम्परा से जोड दिया जाता है। विशेष कर पेशे में तो इसका कुछ ज्यादा ही प्रभाव है। डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, वकील का बेटा वकील, व्यवसायी का बेटा व्यवसायी और उद्योगपति का बेटा उद्योगपति ही बनता है, अभिनेता का बेटा अभिनेता ही बनता है। हर पिता की तरह बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध अभिनेताओं ने अपने पुत्रों को बॉलीवुड में स्थापित करने के लिए अन्य पेशों की तरह करोडों रूपयों का खर्चा किया है। फादर्स डे पर कुछ ऎसे बॉलीवुड अभिनेताओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने अपने बेटों के लिए उसी तरह का कदम उठाया है जिस तरह का हर आम आदमी अपने बेटों के लिए उठाता है।
बॉलीवुड में अपनी सन्तानों को स्थापित करने की परम्परा बहुत पुरानी है। जहां तक हमें याद आता है पृथ्वीराज कपूर का परिवार बॉलीवुड का ऎसा पहला परिवार रहा है जिसने अपने पुत्र राजकपूर को सर्वप्रथम इस उद्योग से परिचित कराया। राजकपूर की सफलता ने इस परम्परा को आगे बढाने में महत्ती भूमिका निभाई। वर्तमान समय में बॉलीवुड में स्टार पुत्रों में सर्वाधिक सफलता राकेश रोशन के पुत्र ऋतिक रोशन ने पाई है। ऋतिक के दादा रोशन अपने समय के ख्यात संगीतकार रहे हैं। उनके दोनों पुत्रों फिल्मों में अपने-अपने कार्य क्षेत्र के महारथी हैं। जहां राकेश रोशन अभिनेता के बाद निर्देशक बने, वहीं उनके भाई राजेश रोशन ने अपने पिता की विरासत को आगे बढाते हुए संगीत का दामन थामा। अपने सुरीले और अलग अंदाज के संगीत के लिए राजेश रोशन ने बॉलीवुड में अलग जगह बनाई है। आज फिल्मों में ऋतिक एक जाना माना नाम है।

ऋतिक को राकेश रोशन ने स्वयं भव्यता के साथ और सफलता की गारंटी के साथ कहो ना प्यार है के जरिए परिचित कराया था। इस फिल्म की सफलता में ऋतिक के नृत्य के साथ राजेश रोशन के संगीत ने भी अहम भूमिका निभाई थी। ऋतिक रोशन के लिए यह सौभाग्य की बात रही है कि जब-जब उनका करियर ढलान पर आया उनके पिता ने उनके लिए ब्लॉक बस्टर फिल्म बनाई। कहो न प्यार के बाद उन्होंने ऋतिक के लिए कोई मिल गया और कृष नामक फिल्में बनाई। अफसोस रहा है तो सिर्फ काइट्स का जो सफलता न पा सकी। इसकी वजह बने निर्देशक अनुराग बसु जो ऋतिक को सही तरीके से दर्शकों के सामने लाने में असफल रहे।
ऋतिक रोशन को वर्तमान समय में कपूर खानदान के युवा अभिनेता रणबीर कपूर से जबरदस्त प्रतिस्पर्धा करनी पड रही है। रणबीर कपूर युवा दर्शकों के चहेते अभिनेता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं। संजय लीला भंसाली की सांवरिया के जरिए उन्होंने परदे पर दस्तक दी और फिर यश चोपडा, करण जौहर, प्रकाश झा और राजकुमार संतोषी के साथ सफलतापूर्वक काम करके उन्होंने जो परचम फहराया है उसको देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि वे बॉलीवुड में अपने पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए एक लम्बी पारी खेलेंगे।
वर्तमान समय में बॉलीवुड में धर्मेन्द्र की पत्नी हेमा के साथ-साथ उनके दोनों पुत्र सन्नी देओल और बॉबी देओल, पुत्री इशा देओल के साथ-साथ उनके भाई विक्रमजीत सिंह देओल के पुत्र अभय देओल सफलतापूर्वक तीन दशक से फिल्मी परदे पर छाए हुए हैं।

सन्नी देओल के लिए धर्मेन्द्र ने राहुल रवैल के निर्देशन में बेताब और बॉबी के लिए राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बरसात बनाई। उनके भतीजे व पुत्री ने उनकी सहायता के बिना अपना करियर फिल्मों में बनाया है। राजकपूर ने 1973 में बॉबी के जरिए ऋषि कपूर को फिल्मी परदे पर बतौर नायक उतारा। हालांकि इससे पहले वे ऋषि कपूर को किशोरावस्था की उम्र में अपनी महžवाकांक्षी फिल्म मेरा नाम जोकर में स्वयं के बचपन की भूमिका में दर्शकों के सामने लेकर आ चुके थे। अपने दूसरे पुत्र राजीव कपूर को स्थापित करने के लिए राजकपूर ने राम तेरी गंगा मैली बनाई लेकिन इसका फायदा उनके द्वारा परिचित कराई गई नायिका मंदाकिनी को ज्यादा मिला।
बॉलीवुड में जुबली कुमार के नाम से ख्यात रहे स्वर्गीय राजेन्द्र कुमार ने 1980 में अपने पुत्र कुमार गौरव को राहुल रवैल के निर्देशन में ही लव स्टोरी नामक फिल्म में प्रस्तुत किया था। फिल्म चली, नायिका चली और कुछ हद तक कुमार गौरव भी चले लेकिन सपाट और भावहीन चेहरे वाले कुमार को आगे सफलता नहीं मिली। 1980 में सुनील दत्त ने अपने पुत्र संजय दत्त को स्वयं के निर्देशन में रॉकी के जरिए बॉलीवुड से परिचित कराया। शुरूआती सफलता के नशे में फिसले संजय दत्त के करियर में सुभाष घई विधाता और महेश भट्ट नाम ऎसे निर्देशक रहे जिन्होंने उनको पुन: सशक्त के साथ परदे पर पेश किया।

आज संजय दत्त पचास की उम्र हो जाने के बावजूद सफलतापूर्वक अपना करियर चला रहे हैं। जम्पिंग जैक के रूप में चर्चित रहे लकडी पहलवान जितेन्द्र के पुत्र तुषार कपूर को अभिनेता से निर्देशक बने सतीश कौशिक ने बॉलीवुड से परिचित कराया था। यह जितेन्द्र का दुर्भाग्य रहा कि उनका पुत्र अपने दस के करियर में अब जाकर कुछ स्थापित हो पाया है।
फिल्म उद्योग में परिवारवाद का जिक्र हो और उसमें अफगानी पठान बन्धु फिरोज खान और संजय खान का जिक्र न करना इस परिवार के साथ एक तरह से जुल्म होगा। फिरोज खान ने बॉलीवुड में अपनी छवि रॉबिनहुड की बनाई जबकि संजय खान ने पारिवारिक और प्रेम कहानियों में खूब नाम कमाया। अभिनेता के साथ यह दोनों भाई निर्देशक भी रहे जिसमें बाजी फिरोज खान ने मारी। उन्होंने अपने निर्देशन में धर्मात्मा, कुर्बानी, जांबाज और यलगार जैसी हॉलीवुड स्टाइल की फिल्मों का निर्देशन किया। अफसोस रहा उनका कि वे अपने बेटे को सफलता नहीं दिला पाए। संजय खान ने अपने निर्देशन में अब्दुल्ला नामक फिल्म बनाई जिसमें शीर्षक भूमिका राजकपूर ने अभिनीत की थी। फिल्म औसत रही। इसके बाद संजय खान दूरदर्शन पर मुडे और टीपू सुल्तान की तलवार के जरिए दर्शकों में एक अमिट छाप छोडने में कामयाब हुए। इनको इसी बात का अफसोस है कि उनका बेटा जाएद खान फिल्मों में असफल हो गया।
कहा जा रहा है कि अब जाएद खान निर्माता के रूप में दर्शकों के सामने आने वाले हैं। बॉलीवुड के ब्लैक एण्ड व्हाइट जमाने के सुपर सितारे अशोक कुमार ने अपने भाईयों किशोर कुमार और अनूप कुमार को फिल्म उद्योग में स्थापित होने में मदद की। कुछ ऎसा ही काम दिलीप कुमार ने भी करने का प्रयास किया था लेकिन उनके छोटे भाई नासिर सफलता नहीं पा सके।
मुम्बई फिल्म उद्योग में मसाला फिल्मों के पितामह कहलाने वाले शशधर मुखर्जी ने अपने पुत्रों जॉय मुखर्जी और देव मुखर्जी को फिल्मों में स्थापित किया। इनमें जॉय मुखर्जी ने सफलता प्राप्त की, जबकि देव मुखर्जी को दर्शकों ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। अभिनेत्रियों की फेहरिस्त में शोभना समर्थ का जिक्र करना चाहेंगे जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों नूतन और तनूजा को बॉलीवुड में प्रवेश कराया। नूतन ने सिनेमाई परदे को अपने जीवन्त अभिनय और शारीरिक सौन्दर्य की बदौलत अपनी मौत तक रोशन बनाया। वहीं तनूजा ने अपनी प्राकृतिक चंचलता के साथ परदे पर इसी प्रकार के किरदारों को जिया था। इन दोनों बहनों ने भी अपने बेटे-बेटी को फिल्मों में उतारा जिनमें सर्वाधिक सफलता मिली तनूता की बेटी काजोल को। इन दोनों में काजोल को दर्शकों ने सिर आंखों पर बिठाया। काजोल के मौसेर भाई अर्थात् नूतन पुत्र मोहनीश बहल ने भी फिल्मों में बतौर नायक प्रवेश किया था लेकिन उन्हें सफलता खलनायक के रूप में मिली।
राजश्री प्रोडक्शन ने उनके खलचरित्र को सुधारते हुए सफल चरित्र अदाकार के रूप में बदला। आज मोहनीश फिल्मों में सशक्त चरित्र अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं। काजोल की चचेरी बहन रानी मुखर्जी ने भी अपने बलबूते पर इस उद्योग में प्रवेश किया था। राजा की आएगी बरात नामक असफल फिल्म से करियर शुरू करने वाली इस अभिनेत्री ने बाद में अपनी मोहक मुस्कान, अगल अंदाज की आवाज और अभिनय के बूते पर अपनी जगह बनाई। सुप्रसिद्ध निर्माता सुरिन्द्रर कपूर ने अपने दोनों बेटों को अलग-अलग रूप से फिल्मी परदे पर पेश किया था। उनके बडे बेटे बोनी ने अपने पिता की विरासत अर्थात् निर्माण के क्षेत्र को चुना जबकि बोनी ने अपने छोटे भाई अनिल कपूर को स्वयं द्वारा निर्मित प्रथम फिल्म वो सात दिन के जरिए दर्शकों के सामने पेश किया। हालांकि अनिल कपूर इस फिल्म से पहले कहां-कहां से गुजर गया के जरिए परदे पर आ चुके थे लेकिन उन्होंने सफलता व पहचान बोनी की फिल्म से ही मिली। पिछले तीस सालों से फिल्मों में सक्रिय अनिल ने अपनी दोनों बेटियों सोनम और रिया कपूर के लिए गत वर्ष 20 करोड का जुआ आयशा के रूप में खेला लेकिन अफसोस वे यह जुआ हार गए। संजय लीला भंसाली जैसे निष्णात निर्देशक के जरिए बॉलीवुड के परदे पर दस्तक देने वाली सोनम कपूर की असफलता को धोने के लिए उन्होंने आयशा में उन्हें नायिका और छोटी बेटी रिया को निर्माता के रूप में पेश किया था।
कपूर खानदान की जो सफलता ऋषिकपूर ने लिखी उनकी इस परम्परा को आगे बढाने में सिर्फ तीन बच्चाों ने अहम भूमिका निभाई है। राजकपूर के बडे बेटे रणधीर कपूर ने एक सफल पारी खेली। आज फिल्मों में जहां रणधीर की दोनों बेटियों करिश्मा और करीना ने नाम व शोहरत पाई है, वहीं ऋषिकपूर इस वक्त कपूर खानदान के अकेले इकलौते पुरूष वारिस के रूप में चरित्र भूमिकाओं में सफलता के साथ अपना करियर आगे बढा रहे हैं। जबकि शशि कपूर की आलौदें नाकाम रही हैं। राजकपूर की तरह ही एक और खानदान का जिक्र करना जरूरी होगा जिनके पुत्र आज फिल्म की सफलता की 200 प्रतिशत गारंटी माने जाते हैं और जिनके स्वयं द्वारा निर्मित निर्देशित फिल्मों ने आज उद्योग को एक नई पहचान दी है।
हम बात कर रहे हैं फिल्म इंडस्ट्री के मिस्टर परफैक्सनिष्ट आमिर खान की जिनके पिता नासिर हुसैन और चाचा ताहिर हुसैन बॉलीवुड में एक सफल निर्माता रहे हैं। नासिर हुसैन ने शशधर मुखर्जी के लास्ट एण्ड फाउण्ड फार्मूले पर सफल फिल्में बनाई हैं। आमिर ने अपने सशक्त अभिनय से अपने खानदान का नाम रोशन किया और अब वे बतौर निर्माता भी बॉलीवुड में सफलता की गारंटी माने जाते हैं। उनके द्वारा निर्मित फिल्में वितरक हाथों हाथ लेते हैं। स्टार पुत्र पुत्रियों की लम्बी फेहरिस्त में अगर सलमान खान और अभिषेक बच्चन का जिक्र न आए तो आलेख में ऎसा लगेगा जैसे कहीं कोई चूक हो गई है। जिक्र करना चाहेंगे सलमान खान का जो बॉलीवुड के प्रथम ख्यात लेखक जोडी सलीम-जावेद के सलीम खान के पुत्र हैं। अपने परिवार में सलमान खान सबसे बडे बेटे हैं। इनके बाद अरबाज और सोहेल खान का नाम आता है।
सलमान ने अपने पिता की तरह लेखक बनने के स्थान पर नायक बनने का ख्वाब देखा और आज वे फिल्म इंडस्ट्री के सर्वाधिक सफलतम नायक हैं। पिछले तीन वर्षो में उन्होंने 100 करोड से ज्यादा का व्यवसाय करने वाली तीन फिल्में वांटेड, दबंग और हाल ही प्रदर्शित हुई रेडी दी हैं। सलमान के बाकी दोनों भाईयों ने भी अभिनय को करियर बनाया लेकिन वे सफलता नहीं पा सके। हां बतौर निर्माता जरूर सोहेल खान ने सफलता पाई और दबंग के जरिए अरबाज खान ने भी निर्माता के रूप में अपनी एक पहचान कायम की है। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे अभिषेक को फिल्मों में प्रवेश दिलाने में कोई रूचि नहीं दिखायी।

अभिषेक बच्चन को अमिताभ के पुत्र होने के कारण जेपी दत्ता ने रिफ्यूजी के जरिए परदे पर उतारा। अफसोस है कि अपने दस साल से ज्यादा लम्बे अभिनय करियर में वे अपना मुकाम आज भी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि उनको इस स्थिति में पहुंचाने में भी अमिताभ ने काफी कोशिश की हैं। उन्होंने अभिषेक के साथ उन फिल्मों में भी काम किया जिनमें उनकी भूमिका कुछ खास नहीं थी (बंटी और बबली) और उन में भी काम किया जिनमें वे स्वयं नायक रहे (रामगोपाल वर्मा की सरकार और सरकार राज) ऎसी ही फिल्में रही हैं। बहुत लम्बी है यह फेहरिस्त जिस पर जितना चाहे उतना लिखा जा सकता है। फिर कभी मौका मिला तो इस आलेख को आगे भी पाठकों की जानकारी के लिए देने का प्रयास किया जाएगा। फिलहाल तो इस रविवार 19 जून को फादर्स डे पर इतना ही काफी है।

- : राजेश कुमार भगताणी

Monday, June 13, 2011

निर्देशकीय पकड के साथ रोमांचक थ्रिलर है : शैतान

फिल्म समीक्षा -राजेश कुमार भगताणी
निर्माता : अनुराग कश्यप
निर्देशक : विजय नांबियार
कलाकार : कल्कि कश्यप, शिव पंडित, रजत कपूर, पवन मल्होत्रा, रूखसार, अभिजीत देशपांडे, राजीव खण्डेलवाल

अनुराग कश्यप फिल्म उद्योग में ऎसे फिल्मकार के रूप में सामने आए हैं जिनका सिनेमा व्यावसायिक और कला सिनेमा के विपरीत चलता है। जहां किरदारों में विरोधाभास देखने को मिलता है। उनकी देव डी और गुलाल ऎसी ही फिल्में रही हैं। अनुराग आजकल उन लेखक निर्देशकों के लिए सीढ़ी बनने का प्रयास कर रहे हैं जिनको बॉलीवुड में कोई निर्माता नहीं मिल रहा। जिनका सिनेमा अपने तरीके का है और जो अनुराग के विचारों से मेल खाता है।

शायद इसी सोच के कारण अनुराग और विजय नांबियार का मिलन हुआ है। विजय नांबियार की शैतान की पटकथा उलझी हुई है लेकिन उन्होंने अलग ही तरीके से इसे परदे पर पेश किया है। इस कहानी में उन्होंने पुलिस डिपार्टमेंट की खामियों, खूबियों के साथ आज के युवाओं की अपने माता-पिता के साथ बढ़ती दूरियों का खूबसूरती से चित्रण किया है।

इस पेचीदा कथानक में हालांकि मध्यान्तर के बाद कुछ ऎसे रोचक मोड हैं जो दर्शकों को अन्त तक फिल्म देखने को मजबूर करते हैं। लेकिन यह सिनेमा आम आदमी का नहीं है। यह उन लोगों का सिनेमा है जिनके लिए जिन्दगी बोरिंग हैं और उबाऊ है जो हर रोज नए घटनाक्रम से रूबरू होना चाहते हैं। यह उन लोगों के लिए है जो जोखिम उठाना पसन्द करते हैं और जिन्हें दब्बू और संस्कारों में पला नौजवान ईष्र्या की दृष्टि से देखता है। फिल्म का कथानक पांच ऎसे शहरी युवाओं का है जिनकी जिन्दगी रोमांचक घटनाओं से भरी होती है। इससे वे दूसरों को आकर्षित करते हैं। जो दुनिया को अपनी घटनाओं से नए रूपों में संवारते हैं। खतरा लेना जिनकी फितरत है जो जानते हैं कि फिसले तो समझो गए। विजय नांबियार की शैतान की यही कहानी है। इन किरदारों में कुछ अमीर और कुछ मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं। इन सभी के जीवन में कहीं न कहीं कोई कमी है जिसे पूरा करने के लिए ये &द्दह्ल;नशा, दारू, पार्टी और सैक्स में लीन रहते हैं।

अपने करियर में अब तक अनुराग कश्यप ने जितनी भी फिल्में बनाई हैं उससे उनका एक दर्शक समूह बन गया है, जो उनके नाम पर फिल्म देखने आता है। बतौर निर्देशक बिजय नांबियार का निर्देशन कमाल का है। उन्होंने अपने सम्पादक की सहायता से फिल्म को पूरी तरह से दर्शनीय बनाया है। हालांकि कुछ तकनीकी कमियों के कारण जरूर यह अखरती है खासकर किरदारों का आपस में फुसफुसा कर बोलना जो दर्शकों को समझ में नहीं आता है।

उन्होंने कलाकारों से अच्छा काम लिया है, बल्कि कहानी की गति को तेज रफ्तार भी दी है जिससे फिल्म का रोमांच बढ जाता है। वास्तविक स्थलों पर दृश्यों के फिल्मांकन की वजह से फिल्म में वास्तविकता दिखाई देती है। देवआनन्द की काला बाजार की क्लासिक गीत खोया-खोया चांद खिला आसमां आंखों में सारी रात जाएगी... का उन्होंने अच्छा उपयोग किया है। तकनीकी तौर पर बिजॉय का शॉट लेने का अंदाज काबिले तारीफ है। उन्होंने जिस अंदाज में स्लो मोशन का उपयोग किया है वह तो देखते ही बनता है। अगर इस फिल्म के सम्पादक एमी (कल्कि) के अतीत को बार-बार नहीं दोहराते तो फिल्म की पकड और मजबूत होती। जयपुर से टीवी जगत और फिर आमिर के जरिए बॉलीवुड में पहचान बनाने वाले राजीव खण्डेलवाल का अभिनय सारे कलाकारों में सर्वश्रेष्ठ है। फिल्म की फोटोग्राफी उम्दा है। कैमरामैन ने रात के धूसर अंधेरे में दृश्यों को जीवंतता के साथ कैमरे में कैद किया है। अपने अनूठे प्रस्तुतीकरण और थ्रिल की वजह से शैतान एक अलग हटकर बनी फिल्म है जिसे आप मसाला फिल्मों से अलग रखकर देखना पसन्द कर सकते हैं।

मैं हमेशा सेक्स के मूड में रहती हूं: केमरून डियाज


लंदन। हॉलिवुड की हसीन बाला केमरून को सेक्स बहुत पसंद है। सेक्स के बारे में डियाज ने अपने विचार खुलकर प्रकट किए।
अभिनेत्री केमरून डियाज़ का कहना है कि मै हमेशा सेक्स करने के मूड में रहती हूं और सेक्स मेरा प्रिय खेल है। एक वेबसाईट की खबर के अनुसार डियाज़ का कहना है कि इंग्लिश में सेक्स सबसे सेक्सी शब्द है,मुझे तो यह शब्द बहुत सेक्सी लगता है, इसमें कोई जादू है।